Tuesday, August 18, 2015

कोई अटका हुआ है पल शायद

कोई अटका हुआ है पल शायद
वक़्त में पड़ गया है बल शायद

लब पे आई मिरी ग़ज़ल शायद
वो अकेले हैं आजकल शायद

दिल अगर है तो दर्द भी होगा
इसका कोई नहीं है हल शायद

जानते हैं सवाब-ए-रहम-ओ-करम
उन से होता नहीं अमल शायद

(सवाब-ए-रहम-ओ-करम = अच्छे कर्मो का पुण्य)

आ रही है जो चाप क़दमों की
खिल रहे हैं कहीं कँवल शायद

राख़ को भी कुरेद कर देखो
अभी जलता हो कोई पल शायद

चाँद डूबे तो चाँद ही निकले
आप के पास होगा हल शायद

- गुलज़ार

जगजीत सिंह/ Jagjit Singh 

ग़ुलाम अली/ Ghulam Ali 


 

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