Sunday, March 22, 2015

क़ुर्बतों में भी जुदाई के ज़माने माँगे

क़ुर्बतों में भी जुदाई के ज़माने माँगे
दिल वो बेमेह्र कि रोने के बहाने माँगे

(क़ुर्बतों = निकटता, सामीप्य), (बेमेह्र = निर्दयी)

अपना ये हाल के जी हार चुके, लुट भी चुके
और मुहब्बत वही अन्दाज़ पुराने माँगे

यही दिल था कि तरसता था मरासिम के लिए
अब यही तर्क-ए-तअल्लुक़ के बहाने माँगे

(मरासिम = मेल-जोल, प्रेम-व्यवहार), (तर्क-ए-तअल्लुक़ = संबंध-विच्छेद)

हम न होते तो किसी और के चर्चे होते
ख़िल्क़त-ए-शहर तो कहने को फ़साने माँगे

(ख़िल्क़त-ए-शहर = शहर के लोग/ जन-समूह)

ज़िन्दगी हम तेरे दाग़ों से रहे शर्मिन्दा
और तू है कि सदा आइनाख़ाने माँगे

(आइनाख़ाने = शीशमहल, वह मकान जिसके चारों तरफ़ दर्पण लगे हुए हों)

दिल किसी हाल पे क़ाने ही नहीं जान-ए-'फ़राज़'
मिल गये तुम भी तो क्या और न जाने माँगे

(क़ाने = संतुष्ट)

-अहमद फ़राज़

ग़ुलाम अली/ Ghulam Ali 

सोनू निगम/ Sonu Nigam 
 
तलत अज़ीज़/ Talat Aziz

3 comments:

  1. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - शुक्रवार- 27/03/2015 को
    हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 45
    पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,

    ReplyDelete
  2. शुक्रिया पढ़वाने के लिए , मंगलकामनाएं !

    ReplyDelete