Sunday, November 16, 2014

नसीम-ए-सुबह गुलशन में गुलों से खेलती होगी

नसीम-ए-सुबह गुलशन में गुलों से खेलती होगी
किसी की आख़िरी हिचकी किसी की दिल्लगी होगी

(नसीम-ए-सुबह = सुबह की शीतल हवा), (गुलशन = बाग़, बग़ीचा), (गुल = फूल)

 तेरे क़दमों पे सर होगा क़ज़ा सर पे खड़ी होगी
फिर उस सज्दे का क्या कहना अनोखी बंदगी होगी

(क़ज़ा = मौत)

तुम्हें दानिस्ता महफ़िल में जो देखा हो तो मुजरिम हूँ
नज़र आख़िर नज़र है बे-इरादा उठ गई होगी

(दानिस्ता = जान बूझ कर)

मज़ा आ जायेगा महशर में कुछ सुनने सुनाने का
ज़ुबाँ होगी हमारी और कहानी आप की होगी

(महशर = फैसले का दिन, क़यामत का दिन)

सर-ए-महफ़िल बता दूँगा सर-ए-महशर दिखा दूँगा
हमारे साथ तुम होगे ये दुनिया देखती होगी

(सर-ए-महफ़िल = भरी सभा में, सबके सामने), (सर-ए-महशर = क़यामत के दिन)

यही आलम रहा पर्दानशीनों का तो ज़ाहिर है
ख़ुदाई आप से होगी न हम से बंदगी होगी

(आलम = दशा, हालत), (ज़ाहिर = प्रकट)

त'अज्जुब क्या लगी जो आग ऐ 'सीमाब' सीने में
हज़ारों दिल मे अँगारे भरे थे लग गई होगी

-सीमाब अकबराबादी


                                                                 रेशमा/ Reshma 




अज़ीज़ मियाँ/ Aziz Miyan 


जगजीत सिंह/ Jagjit Singh 

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