Friday, August 29, 2014

ख़ुदा हमको ऐसी ख़ुदाई न दे
के अपने सिवा कुछ दिखाई न दे

ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी भी ज्यादा सफ़ाई न दे

(ख़तावार = अपराधी, दोषी)

हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियोँ की सुनाई न दे

(सदा = आवाज़)

अभी तो बदन में लहू है बहुत
क़लम छीन ले, रोशनाई न दे

(रोशनाई = स्याही)

मुझे अपनी चादर से यूँ ढाँप लो
ज़मीँ आसमाँ कुछ दिखाई न दे

ग़ुलामी को बरकत समझने लगें
असीरोँ को ऐसी रिहाई न दे

(बरकत = लाभ, फायदा, कृपा), (असीर = बंदी, क़ैदी)

मुझे ऐसी जन्नत नहीं चाहिए
जहाँ से मदीना दिखाई न दे

मैं अश्कों से नाम-ए-मुहम्मद लिखूँ
क़लम छीन ले रौशनाई न दे

ख़ुदा ऐसे इरफ़ान का नाम है
रहे सामने और दिखाई न दे

(इरफ़ान = बुद्धि, विवेक, ज्ञान)

-बशीर बद्र


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