सदमा तो है मुझे भी कि तुझसे जुदा हूँ मैं
लेकिन ये सोचता हूँ कि अब तेरा क्या हूँ मैं
लेकिन ये सोचता हूँ कि अब तेरा क्या हूँ मैं
बिखरा पड़ा है तेरे ही घर में तेरा वजूद
बेकार महफ़िलों में तुझे ढूँढता हूँ मैं
बेकार महफ़िलों में तुझे ढूँढता हूँ मैं
मैं ख़ुदकशी के जुर्म का करता हूं एतराफ़
अपने बदन की क़ब्र में कबसे गड़ा हूं मैं
अपने बदन की क़ब्र में कबसे गड़ा हूं मैं
(एतराफ़ = इकरार करना, मानना)
किस-किसका नाम लाऊँ ज़बाँ पर कि तेरे साथ
हर रोज़ एक शख़्स नया देखता हूँ मैं
हर रोज़ एक शख़्स नया देखता हूँ मैं
ना जाने किस अदा से लिया तूने मेरा नाम
दुनिया समझ रही है के सब कुछ तेरा हूं मैं
दुनिया समझ रही है के सब कुछ तेरा हूं मैं
ले मेरे तजुर्बों से सबक ऐ मेरे रक़ीब
दो चार साल उम्र में तुझसे बड़ा हूँ मैं
पहुँचा जो तेरे दर पे तो महसूस ये हुआ
लम्बी सी एक क़तार में जैसे खड़ा हूँ मैं
दो चार साल उम्र में तुझसे बड़ा हूँ मैं
पहुँचा जो तेरे दर पे तो महसूस ये हुआ
लम्बी सी एक क़तार में जैसे खड़ा हूँ मैं
जागा हुआ ज़मीर वो आईना है ‘क़तील’
सोने से पहले रोज़ जिसे देखता हूं मैं
(ज़मीर = मन, विवेक)
सोने से पहले रोज़ जिसे देखता हूं मैं
(ज़मीर = मन, विवेक)
-क़तील शिफाई
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